बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएं | REET 2022 Teaching Method Notes

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बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएं

बाल विकास की अनेक अवस्था पाई जाती है जिनमें से चार प्रमुख अवस्था होती है शैशवावस्था बाल्यावस्था किशोरावस्था युवा अवस्था आदि।

शैशवावस्था

जन्म से 5 वर्ष तक की अवस्था को शैशवावस्था कहते हैं जन्म से लेकर 2 वर्ष तक की शशुओं को अनिवार्यता स्तनपान करवाना चाहिए। हां साधु शिशु के लिए स्वास्थ्यवर्धक सुपर्ब से होता है रोग प्रतिरोधक क्षमता वृद्धि होती है वह तो से दूध नहीं पिलाना चाहिए लोगों के संक्रमण की संभावना बढ़ती है यदि शिशु को अलग से दूध देना कि वह तो कटोरी चम्मच से पिलाना चाहिए।

शैशवावस्था में 1 से 3 वर्ष के शिशु के लिए 1100 से 1200 कैलोरी 3 से 4 वर्ष के शिशु के लिए 300 कैलोरी तथा 4 से 6 वर्ष के शिशु के लिए 14 से 15 कैलोरी के मध्य ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

बाल्यावस्था

6 से 12 वर्ष तक की अवस्था को बाल्यावस्था कहते हैं इस अवस्था में बालक बालिकाओं को पढ़ाई के अलावा अधिकांश समय खेलकूद में बीतता है खेलकूद के कारण ही इनकी शारीरिक ऊर्जा अधिक वह होती है इन्हें अधिक कैलोरी प्रदान करने वाला भोजन देना चाहिए इस व्यवस्था तथा बाजे अवस्था में बालक बालिकाओं के भोजन की आवश्यकता समान होती है अतः बालक बालिकाओं को समान मात्रा में कैलोरी युक्त पौष्टिक भोजन देना चाहिए।

बालक बालिकाओं के लिए प्रोटीन मांसपेशियों को ठोस बनाने अस्थियों के तंतु का निर्माण करने वाला संक्रामक रोगों से शरीर की रक्षा करने के लिए आवश्यक होता है अतः इनके भोजन में अधिक मात्रा में प्रोटीन युक्त आहार जैसे मांस मछली दूध पनीर अंडे स्वयं मटर आदि का समावेश करना चाहिए साथियों एवं दातों की स्वस्थ वर्दी के लिए कैल्शियम तथा फास्फोरस युक्त पदार्थ जैसे दूध अनाज सब्जियां आयोडीन युक्त नमक आदि रखना चाहिए।

किशोरावस्था

13 से 19 वर्ष की अवस्था को किशोरावस्था कहते हैं बालक बालिका जब इस अवस्था में आते हैं तो उसमें शारीरिक मानसिक एवं भावनात्मक परिवर्तन और तेजी से होते हैं यह अधिक शारीरिक परिश्रम करने योग्य होते हैं हमारे जीवन काल में सर्वाधिक पोषक तत्व की आवश्यकता किशोरावस्था में होती है शारीरिक गठन और कार्यक्रम का अंतर बारिक बालिकाओं के पोषण की आवश्यकता को प्रभावित करता है।

बाल विकास को प्रभावित करने वाले कारक

भोजन तथा पोषण –स्वदेश सुरुचिपूर्ण शुद्ध और संतुलित भोजन शरीर का पोषण करता है यह शरीर की वृद्धि और विकास के लिए अति आवश्यक है पौष्टिक भोजन थकान का प्रबल शत्रु और शारीरिक विकास का परम मित्र होता है।

घर परिवार -बच्चों के सर्वागीण विकास में संतुलित वर्दी में घर और परिवार का एक महत्वपूर्ण योगदान होता है घर में मिलने वले पोषण से उसमें समुचित शारीरिक वृद्धि होती है घर में परिवार के सदस्य आपस में मिल जुल कर रहते हैं जिसमें बालक बालिकाओं से प्रेम सहनशीलता अपनत्व सहानुभूति आदि भावनाओं का विकास होता है अपने आप को सुरक्षित महसूस करते हैं तथा उसमें आत्मविश्वास बढ़ता है अतः घर का उत्तम भतार बालक बालिकाओं के शारीरिक वृद्धि एवं विकास के लिए महत्वपूर्ण होता है।

विद्यालय व शिक्षा –विद्यालय में बालक बालिका शिक्षा ग्रहण करते हैं शिक्षा से उनका मानसिक विकास होता है साथ ही वहां स्कर्टिंग गाउल्डिंग एनसीसी खेल कार्यानुभव साहित्यिक व सांस्कृतिक अधिकारियों में भाग लेते हैं इनके पर्वतीय से उनमें नैतिक शारीरिक मानसिक विकास के साथ-साथ आतंक विश्वास नैतिकता सा देश पूर्व नेतृत्व आदि गुणों का विकास होता है अतः विद्यालय शिक्षा विद्यार्थी की उचित वर्दी है विकास के लिए आवश्यक होता है।

खेल तथा मनोरंजन- विद्यार्थी के शारीरिक विकास के साथ-साथ उनमें प्रेम एकता अनुशासन संघर्षशील ता एवं नेतृत्व के गुणों का विकास होता है नाटक रेडियो नौटंकी रामलीला टीवी चिड़ियाघर सर्कस सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि स्वस्थ मनोरंजन आत्मा के युवाओं से बालक बालिकाओं के ज्ञान अर्जित करते हैं इस प्रकार खेल एवं मनोरंजन भी बालक बालिकाओं के विकास को प्रभावित करते हैं।

वातावरण -में रहने वाले बालक स्वस्थ रहते हैं जबकि गंदी बस्ती तंग गलियों बंद मकानों को प्रदूषित स्थानों पर रहने वाले बालक हमेशा स्वस्थ होते हैं स्वच्छता ही सुंदर स्वास्थ्य का रहस्य ह इसलिए स्वस्थ भोजन वस्त्र और स्थान वाले बालकों का शारीरिक विकास होता है।

योगासन तथा व्यायाम- नियमित योगासन और व्यायाम करने से शरीर स्वस्थ रहता है इसमें शरीर की संतुलित भर दिया विकास होता है तथा इसके मन और मस्तिष्क पर नियंत्रण करने की क्षमता भी प्रदान होती है।

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