भारत का राष्ट्रपति
भारत में ब्रिटेन के समान संसदीय शासन प्रणाली का अनुसरण किया गया है इसके अंतर्गत समस्या संस्थाओं को दो भागों में विभाजित किया गया है एक नाम मात्र तथा दूसरी वास्तविक
नाममात्र का प्रमुख राष्ट्रपति होता है लेकिन उसकी शक्तियों का वास्तविक प्रयोग मंत्री परिषद के द्वारा किया जाता है जिसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है।
भारतीय राष्ट्रपति के लिए अनेक शब्दों का प्रयोग किया गया है जैसे औपचारिक प्रमुख रबड़ का स्टांप नाम मात्र का प्रमुख राष्ट्र का प्रमुख कार्यपालिका का प्रमुख संवैधानिक प्रमुख संसदीय शासन का प्रमुख प्रथम नागरिक सर्वोच्च नागरिक गणराज्य का प्रमुख
अनुच्छेद 52- अनुच्छेद के अंतर्गत भारत में 1 राष्ट्रपति होगा।
अनुच्छेद 53 –अनुच्छेद के अंतर्गत भारतीय संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित है जिसका प्रयोग में स्यं या अपने अधीनस्थों के माध्यम से कर सकता है।
अनुच्छेद 54- अनुच्छेद के अंतर्गत राष्ट्रपति का निर्वाचन जनता के द्वारा परोक्ष रूप से एक निर्वाचन मंडल के माध्यम से किया जाता है उस निर्वाचन मंडल में लोकसभा के निर्वाचित सदस्य राज्य के निर्वाचित सदस्य राज्यों के विधानसभा के निर्वाचित सदस्य तथा केंद्र शासित प्रदेशों में दिल्ली तथा पुडुचेरी के विधानसभा के निर्वाचित सदस्य राज्य के रूप में शामिल होते हैं।
70 वे संविधान संशोधन अधिनियम 1992 के माध्यम से राष्ट्रपति की निर्वाचन मंडल में दिल्ली पांडुचेरी को राज्य के रूप में शामिल किया गया है।
मनोनीत सदस्य तथा राज्य विधान परिषद के सदस्यों को राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल में शामिल नहीं किया जा सकता है।
राष्ट्रपति के निर्वाचन के संबंध में निर्वाचक मंडल का प्रावधान आयरलैंड से ग्रहण किया गया है।
संविधान सभा में के टीचरों के द्वारा मताधिकार के आधार पर राष्ट्रपति के निर्वाचन की अनुशंसा की गई परंतु इसे व्यवहारिक नहीं होने के कारण स्वीकार नहीं किया गया है।
अनुच्छेद 55 –निर्वाचन की प्रक्रिया इस अनुच्छेद के अंतर्गत अनुपातिक प्रतिनिधित्व की एकल संक्रमणीय मत पद्धति द्वारा मतदान की प्रक्रिया होती है एकल संक्रमणीय मत पद्धति के अंतर्गत उम्मीदवार को विजय होने के लिए मतों के एक न्यूनतम कोटा की आवश्यकता होती है जो कि कुल वैद्य मतों का 55 परसेंट से 1 अधिक होता है इस पद्धति में मतदाता उम्मीदवार को केवल एक मत प्रदान करता है परंतु अन्य विधायको के समक्ष वरीयता पड़ता है।
अनुच्छेद 56- राष्ट्रपति का कार्यकाल राष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तारीख से 5 वर्ष तक अपने पद पर बना रहता है परंतु ले उपराष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र संबोधित कर पहले भी पद से मुक्त हो सकता है उपराष्ट्रपति के द्वारा राष्ट्रपति के त्यागपत्र को सर्वप्रथम सूचना लोकसभा अध्यक्ष को प्रदान की जाती है राष्ट्रपति को उसके कार्यकाल की समाप्ति से पूर्व महाभियोग के माध्यम से अपने पद से हटाया जा सकता है जिसकी प्रक्रिया का उल्लेख अनुच्छेद 61 में किया गया है राष्ट्रपति अपने पद पर तब तक बना रहेगा जब तक उसका अगला उत्तराधिकार ग्रहण नहीं कर सकेगा।
अनुच्छेद 57 –इस अधिनियम के अंतर्गत भारतीय संविधान के द्वारा राष्ट्रपति के पुनः निर्वाचन पर कोई प्रतिबंधित नहीं किया गया है अमेरिका में एक व्यक्ति केवल दो बार राष्ट्रपति के पद को धारण कर सकता है।
अनुच्छेद 58 –राष्ट्रपति की योग्यता भारत का नागरिक होना आवश्यक है उसकी आयु 35 वर्ष पूर्ण हो चुकी हो राष्ट्रपति बनने के लिए में लोकसभा सदस्य बनने की योग्यता रखता हो वह भारत सरकार या राज्य सरकार के अधीन किसी भी लाभ के पद को धारण नहा कर रहा हूं लाभ के पद को सावधान में स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है परंतु न्यायपालिका के अनुसार ऐसा पद जिसक धारण करने से लाभ प्राप्त हो तथा लाभ प्राप्त होने की संभावना हो उसे लाभ के पद की श्रेणी में शामिल किया जाएगा।
अनुच्छेद 59 –इस अनुच्छेद के अंतर्गत राष्ट्रपति के शर्तों का उल्लेख किया गया है किसी भी संसद या विधानसभा के सदस्यों को राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित नहीं किया जाता है तथा यदि कोई भी संसदीय दल का सदस्य राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित हो जाता है तो पद ग्रहण की तारीख से उसे वहां त्यागपत्र देना पड़ता है राष्ट्रपति अपने कार्यकाल के दौरान किसी भी लाभ के पद को धारण नहीं करेगा वह बिना किराए दिए शासकीय निवास का प्रयोग करेगा तथा राष्ट्रपति के कार्यकाल के दौरान उसके वेतन भत्ते सुविधाओं उपलब्धियों में कटौती की जा सकेगी।
अनुच्छेद 60 -राष्ट्रपति की शपथ का वर्णन किया गया है अनुच्छेद के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अथवा उसकी अनुपस्थिति में उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ तम अन्याय देश के द्वारा राष्ट्रपति को संविधान तथा विधि के परिरक्षण संरक्षण की शपथ प्रदान की जाती है