बालकों में चिंतन तथा अधिगम | Teaching Mathod Notes

चिंतन का अर्थ तथा परिभाषा

मानव में व्याप्त ऐसी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया जिसमें वह समस्या विशेष के समाधान के लिए स्वच्छता तथा विचार करता है, चिंतन कहलाता है।

चिंतन मानव को अन्य प्राणियों से अलग करता है। चिंतन एक सर्वश्रेष्ठ मानसिक प्रक्रिया है।

पशु भाषा और शब्दों का प्रयोग नहीं कर सकते हैं और इसलिए वे वैचारिक चिंता नहीं कर सकते । शब्दों या भाषा का प्रयोग सरलता से कर सकता है इसलिए उसमें वैचारिक चिंतन की शक्ति पाई जाती है|

इस गुण के कारण मनुष्य पशु से श्रेष्ठ माना जाता है और इसी के कारण हमारी सभ्यता का विकास हो पाया है। पशुओं के कार्य मूल प्रवृत्तियों के आधार पर होते हैं परंतु मनुष्य अपनी कल्पना स्मृति शक्ति के आधार पर किसी कार्य को करने की पूर्व उसके अच्छे व बुरे परिणामों का चिंतन करता है। और तब वह कोई कार्य करता है वह मूल प्रवृत्तियो के कार्य में चिंतन द्वारा परिवर्तन ला जा सकता है।

सोचने विचार करने की मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया को ही चिंतन कहा जाता है अर्थात चिंतन की प्रक्रिया समस्या के कारण उत्पन्न होती है और उसके अंत तक चलती रहती है।

चिंतन के प्रकार


प्रत्यक्ष आत्म चिंतन :- इस प्रकार के चिंतन में कल्पना की सहायता नहीं लेनी पड़ती है।

इस प्रकार का चिंतन बालकों में और कुछ उच्च कोटि के पशुओं में सिंपल जी गोरिल्ला में पाया जाता है।

यह चिंतन उन्हें प्राणी में पाया जाता है जिन्हें केवल अनुभव या प्रत्यक्ष ज्ञान हुआ है

इस प्रकार के चिंतन में पुराने अनुभवों का उपयोग होता है पशुओं में शब्द कल्पना का विकास नहीं हो पाता है

उनमें भाषा तथा नाम के प्रयोग की शक्ति ही नहीं होती है इसलिए वह प्रत्यक्ष ज्ञान संबंधी चिंतन कर सकते हैं और उनके पूर्व अनुभव का प्रयोग भी कर सकते हैं

यदि आप किसी पशु को पत्थर मारते हैं तो वह दर्द का अनुभव करता है और भविष्य में जब भी आपको पत्र उठाते देखा तो तुरंत भाग खड़ा होता है क्योंकि पुराने अनुभव के आधार पर वह यही सोचता है।

प्रतीयात्मक चिंतन :- इस प्रकार के चिंतन का आरंभ पहले निर्मित विचारों से होता है जिसकी सहायता से लेकर किसी निश्चित तक पहुंच जाता है इस प्रकार के चिंतन में विचारों की सहायता लेना आवश्यक है जो शब्द विस्तृत वस्तु तथा अधिक वस्तुओं का बोध कराता है। उसे प्रत्यय कहा जाता है यही प्रत्यय मनुष्य को चिंतन करने में सहायक होता है पशुओं में प्रत्यय शक्ति नहीं होती है इसलिए प्रति आत्म चिंतन उस में नहीं पाया जाता है।

अधिगम

प्राणी अपने को किसी स्थिति में पाकर कोई ना कोई प्रतिक्रिया करता है कुत्ता भूखा है हमारी हाथ में रोटी है वह रोटी पर लपक पड़ता है भूखे होने की स्थिति में कुत्ते की यह प्रतिक्रिया है परंतु यह प्रतिक्रिया प्राकृतिक है सीखी हुई नहीं है बालक के सम्मुख कोई बैठा मिठाई खा रहा है वह उसके हाथ बढ़ा देता है यह भी प्राकृतिक व्यवहार है इसे भी सीखना नहीं पड़ता है तो फिर अधिगम क्या है।

उचित प्रतिक्रिया अनेक संभावित प्रतिक्रिया में से एक होती है बालक मिठाई को सामने देखकर कई प्रकार की प्रतिक्रिया कर सकता है चीन सकता मांग सकता है चुरा सकता है इंतजार कर सकता है उसमें से मांग कर लेना या इंतजार करने की हम उचित कहते हैं दूसरों को अनुचित अनेक संभावित प्रतिक्रिया में से एक का चुन लेना ही अधिगम कहलाता है।

अधिगम के नियम

थार्नडाइक ने  अधिगम के नियमों को तीन भागों में बांटा गया है।

  • परिणाम का नियम
  • अभ्यास का नियम
  • तत्परता का नियम

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