वैदिक संस्कृति: एक परिचय
सिंधु सभ्यता के पतन के बाद लगभग 1500 पूर्व में भारत में जिस सभ्यता का उदय हुआ उसे वैदिक सभ्यता या आर्य सभ्यता कहा जाता है
आर्य शब्द का अर्थ है पवित्र वंश या जन्म वाला मनुष्य होता है
आर्यों की भाषा संस्कृत थी |
आर्य ने अपने आप को श्रेष्ठ एवं विरोधियों, अनार्य को दास तथा दस्यु कहा|
आर्यों का मूल स्थान
आर्यों की मूल स्थान संबंध में सप्त सैंधव, तिब्बत, मध्यप्रदेश, हंगरी, जर्मनी आर्थिक क्षेत्र यूरोप तथा मध्य प्रमुख है|
यह सर्वमान्य मत है कि आर्यों का मूल स्थान मध्य एशिया था
ईरानी आर्यों के प्रथम ग्रंथ जयंत अवस्था में भारतीय आर्यों के ऋग्वैदिक देवता इंद्र, वरुण एवं मित्र का उल्लेख किया गया है|
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प्रो. मैक्समूलर का यह मानना है कि भारत एवं ईरान के बीच स्थित मध्य एशिया क्षेत्र से निकलकर आर्यों की एक शाखा यूरोप दूसरी इरान एवं तीसरी भारत में आकर बसी|
सप्तसिंधु क्षेत्र
ऋग्वेद से जिस भौतिक स्थिति का पता चलता है वह है उत्तर पश्चिम भारत|
ऋग्वेद में कई बार सप्त सिंधु शब्द का उल्लेख मिलता है|
सप्तसिंधु क्षेत्र से सिंधु एवं इनके साथ सहायक नदियां सतलुज, व्यास, रावी, चिनाब, झेलम, सरस्वती एवं दृशहद्वती क्षेत्र प्रतिध्वनित होता है।
आरंभिक आर्यों की सभ्यता सप्तसिंधु में ही विकसित हुई|
ऋग्वेद के नती सूक्त में 21 नदियों का उल्लेख किया गया है
ऋग्वेद में सरस्वती एवं सिंधु को सर्वाधिक पवित्र नदी माना गया है|
वैदिक कालीन समाज
A. ऋग्वैदिक काल
ऋग्वैदिक काल चार वर्गों और पुरोहित, राजन्य, वैश्य एवं शुद्र में विभाजित था।
सामाजिक विभाजन वर्ण के आधार पर ना होकर व्यवसाय के आधार पर था।
ऋग्वेद के अनुसार एक ही परिवार के विभिन्न सदस्य विभिन्न व्यवस्थाओं को अपना सकते थे |
उन्हें व्यवसाय चुनने की पूर्ण स्वतंत्रता थी |
एक वर्ग के लोग से में परिवर्तन करके दूसरे वर्ग में शामिल हो सकते थे
परिवार ऋग्वैदिक वैदिक सामाजिक जीवन की इकाई थी।
ऋग्वैदिक वैदिक समाज पितृसत्तात्मक था।
परिवार का मुखिया कुलपति या कुल्लप्पा कहलाता था।
ऋग्वैदिक वैदिक समाज में पिता का स्वाभाविक उत्तराधिकारी उसका जेष्ठ पुत्र होता था
समाज में आमतौर पर एक विवाह की पद्धति प्रचलित थी ।
रिग वैदिक समाज में महिलाओं का स्थान ऊंचा था एवं उन्हें पूरी स्वतंत्रता थी।
पर्दा प्रथा, एवं सती प्रथा का प्रचलन इस काल में नहीं था ।
स्त्रियों को वेदों का अध्ययन करने एवं पति के साथ सार्वजनिक उत्सव एवं स्वभाव में हिस्सा लेने का पूर्ण अधिकार था ।
विधवा विवाह प्रचलन में थी परंतु बाल विवाह का कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं होता है ।
स्त्रियों की स्थिति अच्छी होते हुए भी पैतृक संपत्ति की हकदार नहीं होती थी।
दहेज प्रथा जैसी सामाजिक बुराइयां इस काल में प्रचलन में थी।
फल, सब्जी, दूध से तैयार पदार्थ आदि आयोग के प्रमुख भोजन थे।
B. उत्तर वैदिक काल
प्रचलित विवाह की प्रचलित पद्धतियां
1. ब्रह्म विवाह- समाज के सामने व्यवस्थित विवाह।
2. प्रजापत्य विवाह- यह भी ब्रह्म विवाह के समान ही होता था परंतु अंतर सिर्फ इतना था कि इस प्रकार का विवाह करने के पश्चात कोई भी वानप्रस्थ अथवा सन्यास ग्रहण नहीं कर सकता था ।
3. देव विवाह – यज्ञ के समय पुरोहित को भेंट की गई कन्या गंधर्व विवाह यह एक प्रकार का प्रेम विवाह था जिसक प्रचलन तो था परंतु कम था।
4. आर्ष विवाह- इस प्रकार के विवाह में वर वधू के अभिभावक को एक गाय एवं एक बेल भेंट में देता था।
5. असुर विवाह- कन्या के अभिभावक को धन देकर किया गया विवाह| इस विवाह में कन्या की बिक्री करने की प्रथा के प्रचलन में होने का प्रमाण मिलता है।
6. राक्षस विवाह – कन्या का अपहरण कर किया गया विवाह।
7. पैशाच विवाह- यह जबरन किया गया बलात्कार था।
वैदिक कालीन अर्थव्यवस्था
A. ऋग्वैदिक काल
पशुपालन ऋग्वैदिक आर्यों का मुख्य पेशा | था साथ ही कृषि एवं सीमित व्यवहार भी प्रचलन में थी।
पशु ही संपत्ति में मुख्य आधार माने जाते थे ।
खेतों को जोतने के लिए हलो एवं इनमें 6, 8 या 12 बैलों का प्रयोग किया जाता था।
खाद्यान्नों को सामूहिक रूप से यह और धान््य कहा गए है।
B. उत्तर वैदिक काल
उत्तर वैदिक काल में कृषि, उद्योग धंधे, व्यापार सभी क्षेत्रों में प्रगति हुई।
इस युग में हेलो को 24 बेलो द्वारा खींचे जाने का उल्लेख मिलता है।
इस युग में कृषि में खाद का प्रयोग आरंभ हुआ ।
इस काल में हल को सिरा एवं हलरेखा को सिता कहा गया।